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Friday 8 March 2013

महिला दिवस है शक्ति दिवस

एक नारी की पूजा का विधान भारतीय शास्त्रों में आदि देवी शक्ति की उपासना का सबसे बेहतर तरीका माना गया है. कन्या पूजन से बड़ा पुण्य कुछ नहीं होता और बेटी के कन्यादान से बड़ा कोई दान नहीं होता. लेकिन पवित्र शास्त्रों में लिखी-कही यह बातें क्या सिर्फ कागजों तक ही सीमित रहेंगी? आखिर क्यूं जिस देश में नारी को कन्या रूप में पूजने का विधान है वहां कन्या भ्रूण हत्या एक बड़े पैमाने पर होती है? क्यूं जिस देश में परमात्मा को नारी रूप में देवी मां कहा जाता है उसे घर की चौखट के अंदर ही रखा जाना बेहतर समझा जाता है? क्यूं इस देश में मर्दों की मर्दानगी अपनी पत्नी पर काबू रखने और उसके शरीर पर चोट देने की कला से मापा जाता है? आज विश्व महिला दिवस के मौके पर शायद हर भारतीय महिला के मन में यही प्रश्न हो और सिर्फ भारत ही क्यूं विश्व के अन्य देशों में भी महिलाओं की स्थिति वासना-पूर्ति और बच्चा जनने वाली मशीन से अधिक नहीं है !!

आज जब हम विश्व पटल पर बड़ी-बड़ी महिलाओं को राष्ट्राध्यक्ष या बड़े कारोबारियों की लिस्ट में अव्वल पाते हैं तो हमें लगता है हो गया भैया नारी सशक्तिकरण  लेकिन  मुठ्ठी भर महिलाओं के उत्थान करने से पूरे नारी समाज का तो कल्याण नहीं हो सकता ना. आज अगर सच में महिलाओं का सशक्तिकरण हुआ होता तो दिल्ली गैंगरेप के बाद जनता को सड़कों पर ना उतरना पड़ता, गोपाल कांडा जैसे नर पिशाचों के पंजों तले किसी गीतिका जैसी फूल के अरमान ना कुचलते. गर देश और इस संसार में महिलाओं को जीने और सम्मान से रहने का समान अवसर प्रदान होता तो कन्या भ्रूण हत्या एक वैश्विक समस्या नहीं बनती.

भारतीय वेदों में वेदों में ही लिखा गया है कि:“यत्र नार्यस्तु पूज्‍यंते रमन्ते तत्र देवता” यानि ईश्वर अर्द्धनारीश्वर रूप में हैं यानि ईश्वर भी नारी के बिना आधे और अधूरे हैं.


जहां नारी की पूजा होती है वहां ईश्वर का वास होता है. लेकिन आधुनिक समाज और बाजारवाद ने महिलाओं को मात्र उपभोग की वस्तु बनाकर पेश किया है. आज बाजारवाद का ही नतीजा है कि डियो से लेकर कंडोम तक के विज्ञापनों में आपको नारी की कामुकता पेश की जाती है. फिल्मों में नारी को भोग की वस्तु के रूप में सजा कर परोसा जाता है

ये सब बंद होना चहिये और इसे ख़त्म करने के लिए फिर किसी को झाँसी की रानी तो बन्ना ही पड़ेगा !!






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